कई सालों से गुटखा बनाने का कारोबार चला रहे 52 साल के विजय तिवारी खुद ही मुंह के कैंसर का शिकार हो गए। मुंह के कैंसर से जूझते हुए छह कीमोथेरपी और 36 चरणों के रेडिऐशन के दर्दनाक अऩुभव के बाद तिवारी ने अपने 'फलते-फूलते' कारोबार को बंद करने का फैसला किया।
तिवारी का कहना है कि गुटखे की मैन्युफैक्चरिंग के दौरान केसर, इलायची आदि के फ्लेवर के बजाय सस्ते केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है। गुटखे की क्वॉलिटी जांच के लिए इसे लगातार चखने की वजह से तिवारी को इसकी लत लग गई और कैंसर का शिकार हो गए। 2011 में जब तिवारी को मुंह के कैंसर का पता चला तो उन्होंने गुटखे में इस्तेमाले होने वाला खुशबू बनाने के अपने बिजनस को बंद करने का निर्णय लिया।
तिवारी ने अपने उत्पाद को चेक करने के मकसद से गुटखा खाना शुरू किया था। थोड़े ही दिन बाद वह गुटखा खाने के लती हो गए और रोजाना करीब 25 पैकेट खाने लग गए। कैंसर के कारण हुई सर्जरी से अब तिवारी जी का चेहरा भी बदल चुका है। अब उन्होंने इस बात का फैसला किया है कि वह गुटखा इंडस्ट्री का हिस्सा नहीं बने रहेंगे। उन्होंने अब गुटखा के लिए खुशबू के बदले इत्र बनाने का बिजनस शुरू किया है।
तिवारी का कहना है कि गुटखा बनाने वाली कंपनियां असल चीजों के बजाय सस्ते केमिकल इस्तेमाल करती हैं। तिवारी बताते हैं कि मैन्यूफैक्चररर्स गुटखे के फ्लेवर को ठीक करने के लिए मैग्नेशियम कार्बोनेट और गैंबियर (कत्था आदि के बजाय) का इस्तेमाल करते हैं।
इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च की एक रिपोर्ट ने यह खुलासा किया था कि पान मसाला, गुटखा, खैनी और माउथ फ्रेशनर्स आदि में फ्लेवर के लिए कई नुकसानदायक केमिकल्स को मिलाया जा रहा है।