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तुलसी जयंती पर याद किए गए कवि गोपाल सिंह नेपाली, हुआ कुसुमांजलि का विमोचन भी

तुलसी जयंती पर याद किए गए कवि गोपाल सिंह नेपाली, हुआ कुसुमांजलि का विमोचन भी 
राजेश कानोड़िया, भागलपुर। श्री शिवशक्ति योगपीठ नवगछिया के तत्वावधान में गोस्वामी तुलसीदास और गोपाल सिंह नेपाली का जन्मोत्सव समारोह भागलपुर के तिलकामांझी कृषि भवन स्थित आत्मा के प्रशाल में सोमवार को आयोजित किया गया। जहां मौके पर परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास ही पहले जन्म में महर्षि । उन्होंने रामायण की रचना की थी। तुलसीदास ने श्रीरामचरित मानस की रचना की। इस ग्रंथ के कारण भारत की पहचान विश्व में मानवीय मूल्यों पर आधारित देश का बन गया। उन्होंने कहा कि तुलसीदास को पत्नी रत्नावती ने भगवान से प्रीति लगाने की प्रेरणा दी। इसके बाद तो मानो उन्होंने भगवान से ऐसी प्रीति लगाई कि उनका जीवन सार्थक हो गया। स्वामी आगमानंद जी महाराज गोपाल सिंह नेपाली ने तुलसीदास के जीवन पर आधारित कई कविताओं की रचना की। ऐसा लग रहा है कि तुलसीदास को जन-जन तक पहुंचाने में गोपाल सिंह नेपाली की बहुत बड़ी भूमिका रही है। गोपाल सिंह नेपाली ने अपना देह भागलपुर में त्यागा। लेकिन भागलपुर में सहित्य मनिषी नेपाली के लिए कुछ खास नहीं किया, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। 
इस अवसर पर एसएम महाविद्यालय की स्नातक पार्ट टू राजनीति विज्ञान की छात्रा तृप्ति पांडेय रचित काव्य कुसुमांजलि का विमोचन किया गया। 64 पृष्ठ की इस पुस्तिका में 48 कविताओं का संग्रह है। काव्य की रचना के लिए स्वामी आगमानंद जी महाराज, मानस कोकिला कृष्णा मिश्रा, डा. आशा तिवारी ओझा सहित सभी विद्वान मनिषियों ने तृप्ति आशीर्वाद दिया। कहा कि- तृप्ति की यह पुस्तिका संग्रहणीय है, जिसमें बाल मनोभाव की झलक साफ दिखती है। हमारा भारत, गुरु महिमा, यह साहित्य है, प्राचीन जीवन, आधुनिक जीवन आदि कविताओं की लोगों की खूब सराहना की। 
कार्यक्रम का संचालन डा. विजय कुमार मिश्र विरजू भाई और दिलीप शास्त्री ने किया। कार्यक्रम में सारी व्यवस्था आत्मा के उप परियोजना निदेशक प्रभात कुमार सिंह ने की थी। इस अवसर पर मानस कोकिला कृष्णा मिश्रा, आशा तिवारी ओझा, हरिशंकर ओझा, कुलगीतकार आमोद प्रसाद मिश्र, डा. रामायण सिंह, पंडित डा. ज्योतिन्द्र प्रसाद चौधरी, डा. लक्ष्मीश्वर झा, कवि मुरारी मिश्र, पंडित पुण्डरीकाक्ष पाठक, स्वामी शिव प्रेमानंद भाई जी, मनोरंजन प्रसाद सिंह, पंडित प्रेम शंकर भारती, स्वामी मानवानंद, कुंदन बाबा, मृत्युंजय कुंवर, सत्यजीत मिश्र, विनय सिंह परमार, सुबोध दा ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किए।