कहते हैं अगर इंसान ठान ले तो असंभव कुछ है ही नहीं। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है नवगछिया अनुमंडल के ढोलबज्जा निवासी नागेंद्र सरकार और उनकी पुत्री नंदनी सरकार के साथ संत योगेश ज्ञान स्वरूप तपस्वी ने। आखिरकार इनकी जिद पूरी हुई और विजय घाट पर करीब चार सौ करोड़ की लागत से 1840 मीटर लंबा पुल बन गया।
इसका सीधा असर नवगछिया, मधेपुरा और सहरसा के बाजार पर पड़ा। इन तीनों इलाके में समृद्धि के द्वार भी खुले और लोगों को रोजगार भी मिला। पुल बनने से भागलपुर और मधेपुरा की दूरी जहां 119 किलोमीटर थी, अब 80 किलोमीटर हो गई है। पहले लोगों को पूर्णिया होकर मधेपुरा जाना पड़ता था।
ये थी लोगों की परेशानी
ढोलबज्जा, कदवादियारा, पुनामा प्रताप नगर समेत दो दर्जन से अधिक गांव के लोगों को पुल नहीं बनने से बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता था। यह कष्ट जब स्थानीय निवासी महेंद्र सरकार, नंदिनी सरकार और तपस्वी ने महसूस किया तो सोचा कि कुछ करना चाहिए। हालांकि पुल बनाने की मांग आजादी के बाद से ही हो रही थी, लेकिन धारदार बनाया तपस्वी ने। इसके पूर्व ढोलबज्जा निवासी नागेंद्र सरकार ने 1976 से आंदोलन शुरू किया।
सरकार ने बताया कि आंदोलन के दौरान ही 1987 में 20 साल के तपस्वी भी इसमें शामिल हुए। इस दौरान ढोलबज्जा के सुभाष चौक पर 14 दिनों का धरना तय हुआ लेकिन 11वें दिन पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। नागेंद्र के साथ अनशन में 10वीं की छात्रा 14 वर्षीय उनकी पुत्री नंदिनी सरकार भी शामिल हो गयी।
आखिरकार 11 दिसंबर 1995 को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने यहां पीपा पुल का शिलान्यास किया। जब अप्रैल 2002 तक पीपा पुल का उद्घाटन नहीं हुआ तो नागेंद्र ने आत्मदाह तक की चेतावनी दे दी। फिर पीपा पुल बना। इसके बाद पक्के पुल के लिये आंदोलन शुरू हो गया। इस बीच छिटपुट आंदोलन चलते रहे पर 2004 के बाद यह आंदोलन और तेज हो गया। फरवरी 2004 में तपस्वी ने अनशन शुरू कर दिया। वे ढोलबज्जा के नगडहरी मंदिर के पास बने मठ स्थित पेड़ पर चढ़ गये और वहीं आंदोलन शुरू कर दिया।
ग्रामीणों के अनुरोध पर भी जब वे नहीं उतरे तो लोगों ने कहा कि आपके आंदोलन में हमलोग भी शामिल होंगे। इसके बाद वे पेड़ से उतरे। इसके बाद करीब 48 घंटे तक कोसी की धारा में खड़े रहकर अनशन किया। इस दौरान तपस्वी का पूरा शरीर सफेद हो गया था। इसके बाद गांव में ही बने मठ संत माधो बाबा की समाधि के पास जमीन के अंदर जाकर तपस्वी ने अनशन किया। इस बीच ग्रामीणों ने उनके जिंदगी की सलामती के लिए पूजा-अर्चना भी शुरू कर दी कि पता नहीं अब वे जमीन से दोबारा बाहर आयेंगे या नहीं। लेकिन दो-तीन दिनों के बाद उन्हें समर्थकों ने मिट्टी खोदकर बाहर निकाला। इसके बाद वहां के लोगों के मन में तपस्वी के प्रति और भी श्रद्धा बढ़ गई।आखिरकार मार्च 2011 में पुल का शिलान्यास किया गया। 17 मई 2015 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पुल का उद्घाटन कर दिया।
खुशी इस बात से कि लोगों को मिली सहूलियत
तपस्वी ने भास्कर से बातचीत में बताया कि बाढ़ के पानी और अपराधियों के तांडव को देखते हुए हमारे मन में पुल निर्माण की योजना बनी थी। इसके बाद आंदोलन शुरू किया था। उन्होंने बताया कि पुल का निर्माण 2008 में ही शुरू हो जाता पर चुनावी मुद्दा के चलते इसे विलंब किया गया। आंदोलन के दौरान नवगछिया और भागलपुर जेल में साढ़े तीन महीने तक रहना पड़ा था। खुशी इस बात की है कि विजय घाट पर पुल बन गया। भले ही सरकार ने हमलोगों को उद्घाटन और अन्य मौकों पर भुला दिया, लेकिन आम लोगों को सहूलियत हो गयी, यही हमारे लिए बड़ी बात है।
साभार दैनिक भास्कर