अगर आपको किसी ऐसी फ़िल्म के बारे में पता चले, जिसमें कई विधायकों और पूर्व सांसदों ने काम किया हो, तो क्या आप ऐसी फ़िल्म देखना पसंद करेंगे?
अगर आपका जवाब हां है, तो इस जुलाई में आप ऐसी ही एक भोजपुरी फ़िल्म का आनंद उठा सकते हैं। फ़िल्म का नाम है ‘प्यार मोहब्बत ज़िदाबाद’ और इसके निर्माता-निर्देशक हैं बिहार के कला, संस्कृति और युवा मामलों के मंत्री विनय बिहारी।
निर्माता-निर्देशक के अनुसार फ़िल्म में बाल-विवाह, नशाख़ोरी, जातीय भेदभाव जैसे मुद्दे उठाए गए हैं और यह एक ‘मैसेजफुल फ़िल्म’ है। विधायकों से भरी इस फ़िल्म में पर्दे पर संदेश देने की ज़िम्मेवारी भी विधायकों ने ही निभाई है।
पारिवारिक फ़िल्म
फ़िल्म के एक दृश्य में विधायक सोमप्रकाश यह कहते नज़र आएंगे, "तुम 25 रुपए की दारू पी सकते हो, लेकिन 25 रुपए की किताब ख़रीदकर अपने बच्चों को नहीं दे सकते। और सोचोगे कि मेरा बेटा पढ़कर डीएम-एसपी बने।"सोमप्रकाश पुलिस सेवा से इस्तीफ़ा देकर 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में औरंगाबाद के ओबरा क्षेत्र से चुनाव जीते थे। ख़ुद विनय बिहारी ने फ़िल्म की अभिनेत्री पाखी हेगड़े के भाई का किरदार निभाया है, जो अपनी बहन को बाल-विवाह से बचाता है, जिसके लिए उसे मज़दूरी भी करनी पड़ती है।
विनय बिहारी कहते हैं कि उनकी ख्वाहिश थी कि वह ऐसी फ़िल्म बनाएं, जिसे देखकर यह शिकायत दूर हो कि भोजपुरी में परिवार के साथ बैठकर देखने वाली फ़िल्में नहीं बनतीं।
ऐसे में उन्होंने एक ‘मैसेजफुल फ़िल्म’ बनाने का जोखिम उठाया है और इसे कम करने के लिए विधायकों से उन्होंने सोच-समझकर अभिनय कराया। फ़िल्म में अभिनय करने वाले श्रवण कुमार और ऊषा विद्यार्थी जैसे विधायक फ़िल्म में काम करने के अपने अनुभव को रोचक बताते हैं।
विनय बिहारी मानते हैं कि विधायकों के नाम पर उनके समर्थकों की ‘माउथ पब्लिसिटी’ के ज़रिए ज्यादा-से-ज्यादा लोग फ़िल्म देखने आएंगे।
'विरोधाभास'
दिलचस्प यह है कि एक साफ़-सुथरी संदेशपूर्ण फ़िल्म बनाने का दावा करने वाले विनय बिहारी की छवि भोजपुरी में अश्लीलता को बढ़ावा देने वाले गीतकार के रूप में भी रही है। इन आरापों से विनय इनकार भी नहीं करते। वे कहते हैं कि अब उन्होंने ऐसे गीतों से तौबा कर ली है और उनकी यह फ़िल्म पूरी तरह से पारिवारिक फ़िल्म है।
उनके दावे पर फ़िल्म समीक्षक विनोद अनुपम कहते हैं, "विनय बिहारी अपने दावे पर कितने खरे उतरे हैं, यह तो फ़िल्म देखकर ही दर्शक जान पाएंगे। अगर ऐसा हुआ तो यह भोजपुरी फ़िल्म उद्योग के लिए बड़ी उपलब्धि होगी।"
फ़िल्म के प्रदर्शन की तारीख़ कई बार टलने के बाद अब 11 जुलाई तय की गई है। फ़िल्म रिलीज़ होने के बाद ही पता चलेगा कि जनता अपने नेताओं को बॉक्स ऑफ़िस पर अपना मत देती है या नहीं।
उनके दावे पर फ़िल्म समीक्षक विनोद अनुपम कहते हैं, "विनय बिहारी अपने दावे पर कितने खरे उतरे हैं, यह तो फ़िल्म देखकर ही दर्शक जान पाएंगे। अगर ऐसा हुआ तो यह भोजपुरी फ़िल्म उद्योग के लिए बड़ी उपलब्धि होगी।"
फ़िल्म के प्रदर्शन की तारीख़ कई बार टलने के बाद अब 11 जुलाई तय की गई है। फ़िल्म रिलीज़ होने के बाद ही पता चलेगा कि जनता अपने नेताओं को बॉक्स ऑफ़िस पर अपना मत देती है या नहीं।