शीतलाष्टमी के मौके पर नवगछिया स्थित शीतला मंदिर में सोमवार को अहले सुबह से ही पूजन को श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है | जिसमें खासकर राजस्थानी व मारवाड़ी समाज के लोग, महिला, पुरुष व बच्चे अच्छी संख्या में शामिल देखे जा रहे हैं |
अपने अपने हाथों में पूजा की थाली लिए महिलाएं बच्चो के साथ तो पुरुष अपने हाथों में पानी की बाल्टी लिए शीतला माता के मंदिर पहुँच रहे हैं | जहां सुबह से ही अच्छी भीड़ देखी जा रही है | काफी संख्या में श्रद्धालु मंदिर के बाहर तक लाइन लगा कर खड़े हैं |
नवगछिया स्थित बड़ी शीतला मंदिर तथा छोटी शीतला मंदिर दोनों जगहों पर एक सा नजारा है | जहां लोग अपने परिवार के साथ शीतला माता के पूजन को अपनी बारी का धैर्य पूर्वक इंतजार कर पूजा कर रहे हैं | मौके पर महिलाए मंदिर परिसर में शीतला माता की कहानी भी सुनती हैं | इस अवसर पर रास्ते में पड़ने वाले चौक चौराहों का भी जल अर्पण कर पूजन किया जाता है |
श्रद्धालु बताते हैं कि होलिका दहन के आठवें दिन शीतलाष्टमी मनाया जाता है | किसी भी श्रद्धालु के घर इस दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता है | इस दिन एक रोज पहले का बनाया हुआ बासी भोजन ही खाने की प्रथा है | इसीलिए इसे बसियोडा पर्व के नाम से भी जाना जाता है |
श्रद्धालुओं के अनुसार राजस्थान में इस पर्व की काफी महत्ता है | इस दिन सभी श्रद्धालु शीतला माता का हल्दी और बाजरे का तिलक लगाते हैं | साथ ही जल अर्पण कर सालों भर मन को शीतल रखने की कामना करते हैं | राबड़ी और बाजरे की रोटी शीतला माता को अर्पित करने के बाद बड़े ही श्रद्धा और शौक से प्रसाद के रूप में खाते हैं |
अपने अपने हाथों में पूजा की थाली लिए महिलाएं बच्चो के साथ तो पुरुष अपने हाथों में पानी की बाल्टी लिए शीतला माता के मंदिर पहुँच रहे हैं | जहां सुबह से ही अच्छी भीड़ देखी जा रही है | काफी संख्या में श्रद्धालु मंदिर के बाहर तक लाइन लगा कर खड़े हैं |
नवगछिया स्थित बड़ी शीतला मंदिर तथा छोटी शीतला मंदिर दोनों जगहों पर एक सा नजारा है | जहां लोग अपने परिवार के साथ शीतला माता के पूजन को अपनी बारी का धैर्य पूर्वक इंतजार कर पूजा कर रहे हैं | मौके पर महिलाए मंदिर परिसर में शीतला माता की कहानी भी सुनती हैं | इस अवसर पर रास्ते में पड़ने वाले चौक चौराहों का भी जल अर्पण कर पूजन किया जाता है |
श्रद्धालु बताते हैं कि होलिका दहन के आठवें दिन शीतलाष्टमी मनाया जाता है | किसी भी श्रद्धालु के घर इस दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता है | इस दिन एक रोज पहले का बनाया हुआ बासी भोजन ही खाने की प्रथा है | इसीलिए इसे बसियोडा पर्व के नाम से भी जाना जाता है |
श्रद्धालुओं के अनुसार राजस्थान में इस पर्व की काफी महत्ता है | इस दिन सभी श्रद्धालु शीतला माता का हल्दी और बाजरे का तिलक लगाते हैं | साथ ही जल अर्पण कर सालों भर मन को शीतल रखने की कामना करते हैं | राबड़ी और बाजरे की रोटी शीतला माता को अर्पित करने के बाद बड़े ही श्रद्धा और शौक से प्रसाद के रूप में खाते हैं |