टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा ने कहा है कि दुनिया की सबसे सस्ती
कार टाटा नैनो की संभावनाओं का पूर्ण दोहन करने के लिए उसे फिर से
सजा-संवार कर पेश करने की तैयारी है। टाटा ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘इस
कार के विपणन के लिए हमें जितनी तैयारी करनी चाहिए थी, उतनी तैयारी हम
नहीं कर कर सके थे। मेरे हिसाब से इसको लेकर
जोशोखरोश के ठंडा होने के पीछे यह एक बड़ी वजह थी।’’
उन्होंने बाजार में नैनो कार की संभावनाओं का पूर्ण फायदा न मिलने के जो कारण गिनाए उनमें कारखाना दूसरी जगह ले जाने से जुड़े मुद्दे, प्रचार अभियान तथा डीलरशिप नेटवर्क की कमजोरी जैसे कारण प्रमुख हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या इन मुद्दों का समाधान कर लिया गया है, टाटा ने कहा, ‘‘इसका अब समाधान किया जा रहा है और मुझे लगता है कि हम सफल होंगे। यह तीन-चार साल पुराना उत्पाद है और हमें इसमें ताजगी भरने के लिए कुछ करना है और इस दिशा में हम काम कर रहे हैं।
यह पूछे जाने पर कि जनता की कार के रूप में प्रचारित लखटकिया कार के साथ आखिर क्या गड़बड़ी हुई जिसके कारण 2009 में पेश इस वाहन की संभावनाओं का दोहन नहीं हो पाया, टाटा ने कहा कि इसके पीछे पश्चिम बंगाल की घटनाओं समेत कई बातें रही।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें नया कारखाना बनाना पड़ा। इसके कारण इस कार के भारी उद्घाटन के बाद इसको पेश करने में एक वर्ष से अधिक की देरी हुई जबकि उद्घाटन के समय भारी उत्साह जगा था, होना यह चाहिए था कि उद्घाटन की तारीख के तीन माह में कार सड़कों पर होनी चाहिए थी।
नैनो को मूल रूप से पश्चिम बंगाल के सिंगूर स्थित कारखाने में तैयार किया जाना था लेकिन वहां राजनीतिक विरोध के कारण संयंत्र को गुजरात के साणंद ले जाना पड़ा।
पहली नैनो कार उत्तराखंड के पंतनगर स्थित कारखाने से वर्ष 2009 में निकली लेकिन साणंद से उत्पादन जून 2010 में शुरू हुआ।
शुरू में कार की कीमत करीब एक लाख रुपये थी जबकि फिलहाल इसकी कीमत 1.55 लाख रुपये से लेकर 1.66 लाख रुपये के बीच है। टाटा मोटर्स ने अबतक नैनो की 2.2 लाख से अधिक इकाई बिकी है। पिछले वित्त वर्ष में 74,521 नैनो बिकी थीं।
जोशोखरोश के ठंडा होने के पीछे यह एक बड़ी वजह थी।’’
उन्होंने बाजार में नैनो कार की संभावनाओं का पूर्ण फायदा न मिलने के जो कारण गिनाए उनमें कारखाना दूसरी जगह ले जाने से जुड़े मुद्दे, प्रचार अभियान तथा डीलरशिप नेटवर्क की कमजोरी जैसे कारण प्रमुख हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या इन मुद्दों का समाधान कर लिया गया है, टाटा ने कहा, ‘‘इसका अब समाधान किया जा रहा है और मुझे लगता है कि हम सफल होंगे। यह तीन-चार साल पुराना उत्पाद है और हमें इसमें ताजगी भरने के लिए कुछ करना है और इस दिशा में हम काम कर रहे हैं।
यह पूछे जाने पर कि जनता की कार के रूप में प्रचारित लखटकिया कार के साथ आखिर क्या गड़बड़ी हुई जिसके कारण 2009 में पेश इस वाहन की संभावनाओं का दोहन नहीं हो पाया, टाटा ने कहा कि इसके पीछे पश्चिम बंगाल की घटनाओं समेत कई बातें रही।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें नया कारखाना बनाना पड़ा। इसके कारण इस कार के भारी उद्घाटन के बाद इसको पेश करने में एक वर्ष से अधिक की देरी हुई जबकि उद्घाटन के समय भारी उत्साह जगा था, होना यह चाहिए था कि उद्घाटन की तारीख के तीन माह में कार सड़कों पर होनी चाहिए थी।
नैनो को मूल रूप से पश्चिम बंगाल के सिंगूर स्थित कारखाने में तैयार किया जाना था लेकिन वहां राजनीतिक विरोध के कारण संयंत्र को गुजरात के साणंद ले जाना पड़ा।
पहली नैनो कार उत्तराखंड के पंतनगर स्थित कारखाने से वर्ष 2009 में निकली लेकिन साणंद से उत्पादन जून 2010 में शुरू हुआ।
शुरू में कार की कीमत करीब एक लाख रुपये थी जबकि फिलहाल इसकी कीमत 1.55 लाख रुपये से लेकर 1.66 लाख रुपये के बीच है। टाटा मोटर्स ने अबतक नैनो की 2.2 लाख से अधिक इकाई बिकी है। पिछले वित्त वर्ष में 74,521 नैनो बिकी थीं।