ताजा समाचार :

6/Posts/ticker posts

भागलपुर की भी आबोहवा होने लगी खतरनाक?

राजेश कानोडिया, नवगछिया (भागलपुर): यह पूरी तरह से सही है कि भागलपुर सहित बिहार व झारखंड के कई शहरों की आबोहवा (वातावरण) खराब होती जा रही है. वातावरण इतना प्रदूषित हो रहा है कि अब बिना मास्क के जीवन जीना दूभर सा लगता है. भागलपुर के अस्पतालों में रोजाना मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है. टीबी के ज्यादा मरीज अस्पतालों में भर्ती हो रहे हैं. ऐसा नहीं है कि यह आलम सिर्फ भागलपुर का ही है. यह स्थिति पूरे बिहार व झारखंड के प्रमुख शहरों की बन गयी है.

भागलपुर भी अछूता नहीं है

देश के सभी राज्यों की राजधानी सहित कई शहरों में प्रदूषण स्तर दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. यह अब इस स्तर पर जा पहुंचा है कि लोग बीमार हो रहे हैं. बिना मास्क के लोगों को निकलना दूभर हो रहा है. ताजा आंकड़े यह कह रहे हैं कि देश भर में सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में पटना और मुजफ्फरपुर भी शामिल हैं. इस डाटा से भागलपुर भी अछूता नहीं है.

क्या मार डालेगी भागलपुर की आबोहवा

अगर निजी व सरकारी एजेंसी की डाटा पर गौर करें, तो भागलपुर में सांस लेने लायक शुद्व हवा नहीं है. एक नजर प्यूरिटी एंड क्लिननेस हवा के स्तर पर डालें तो वायु गुणवत्ता 62.50 पीएम पर पहुंच चुका है, जीवन स्तर के लिए जरूरी पेयजल की भी स्थिति खतरनाक ही है. पेयजल की गुणवत्ता 66.67 पर पहुंच चुकी है. जबकि यह 30 के नीचे होनी चाहिए.

क्यों है ऐसा?

भागलपुर गंगा के तट पर बसा एक पौराणिक व ऐतिहासिक शहर है, लेकिन दिनोंदिन गंगा प्रदूषित होती जा रही है. कचड़े के अंबार से गंगा भरती जा रही है. खुद की गाद से भी गंगा भर चुकी है. ऐसे में पेयजल की गुणवत्ता नीचे जा रही है. गंगा के तट पर बसे मोहल्लों में कई घरों में पानी भी पीने लायक नहीं आ पा रहा है. चार से छह घंटे पानी रखने में ही पानी पीला व लाल हो जाता है. इसका एक मात्र कारण गंगा को प्रदूषित होना है.

क्या है कारण 
भागलपुर के चारों ओर पुआल जलाना भी वायु प्रदूषण एक प्रमुख कारण बन रहा है. यह स्थिति दिल्ली की याद दिला जाती है. गांवों में आज भी लोग खाना बनाने के लिए गैस के चूल्हे के बजाय लकड़ी व पत्ते का प्रयोग कर रहे हैं. भागलपुर शहर नार्थ ईस्ट के राज्यों को जोड़ता है, लाखों वाहनों का आवागमन का मुख्य मार्ग होने के कारण सड़कों पर धूल व धुआं वातावरण में शामिल हो जाता है. इससे आम लोग सबसे ज्यादा परेशान हैं.

नहीं रही इको फ्रेंडली आबोहवा

तिलकामांझाी विश्वविद्यालय के सेवानिवृत प्रो एसएन पांडेय का कहना है कि अब भागलपुर की आबोहवा इको फ्रेंडली नहीं रही, एक जमाना था जब यहां के स्वच्छ वातावरण के कारण लोग यहां छुट्टिया मनाने आया करते थे. लेकिन वर्तमान में प्रदूषण इतना बढ़ चुका है कि लोग बीमार हो रहे हैं. लोगों को गंभीर बीमारियां होती जा रही हैं.

क्या कहते हैं डॉक्टर

टीबी एवं चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉक्टर बताते हैं कि हवा की खराब गुणवत्ता का असर शहर में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. इसके कारण दमा, कैंसर और सांस की बीमारियों के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. डॉक्टरों के मुताबिक स्मॉग का बच्चों और सांस की बीमारी के मरीजों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. स्मॉग में छिपे केमिकल के कण अस्थमा के अटैक की आशंका को और ज्यादा बढ़ा देंगे. इसके अलावा कई लोगों को आंखों में जलन और सांस लेने में तकलीफ भी हाेती है. ब्रोंकाइटिस यानी फेफड़े से संबंधित बीमारी के मामले बढ़ जाते हैं. यही नहीं स्मॉग के चलते फेफड़ों की क्षमता भी कम हो सकती है जिससे खिलाड़ियों को तकलीफ होती है. डॉक्टरों के मुताबिक दिल के मरीजों को भी स्मॉग से खतरा है.

इसरो ने कराया है रिसर्च

भारत में वनस्पति से कार्बन के आकलन के लिए इसरो ने बिहार-झारखंड में तिलका मांझी विश्वविद्यालय का चयन किया. वर्ष 2010-11 में ही इसका पहला फेज का काम शुरू हुआ और इसकी रिपोर्ट इसरो को भेजी गयी है. इस रिपोर्ट पर यह कहा जा सकता है कि बिहार-झारखंड में वातावरण अब तक इको फ्रेंडली था, लेकिन अब ऐसा नहीं होता दिख रहा है. प्रदूषण दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है, जो खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है. यह अध्ययन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र के अंतर्गत इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग द्वारा भारत में नेशनल कार्बन प्रोजेक्ट प्रोग्राम के तहत कराया गया है.

जानें रिसर्च को

नेशनल वेजीटेशन कॉर्बन पुल ऐससमेंट प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य विभिन्न जैव परिस्थितीय तंत्र जैसे वन, वन उजाड़, रेलवे, सड़क व नहर के किनारे लगे पेड़-पौधे, कृषि भूमि एवं अन्य उपजाऊ भूमि में कार्बन का आकलन करना है. इसमें पेड़-पौधे को बायोमास का आकलन किया जाता है. प्रथम चरण में के 50 प्लॉट एवं झारखंड के 46 प्लॉट को लिया गया था. इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य लेगाचीयूट और लेगाटीयूट प्वाइंट को चिह्नित करने और वहां पर दिये गये वेजाटिएशन का इनवेंटरी तैयार किया जाता है.

साभार