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बिहार बीजेपी में शाहनवाज बनाम सुशील मोदी!


बिहार में लालू की राजनीति को हाशिए पर धकलने वाली नीतीश और सुशील कुमार मोदी की जोड़ी पिछले साल जून में जुदा हो गई। सुशील कुमार मोदी लंबे वक्त से बिहार में बीजेपी का नेतृत्व कर रहे हैं। लेकिन क्या अगले साल बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी सुशील मोदी के नेतृत्व पर बीजेपी भरोसा करेगी? बिहार की राजनीति जिस तरह करवट ले रही है ऐसे में सुशील मोदी के लिए मुश्किल ही है। सुशील मोदी को शाहनवाज हुसैन और नंदकिशोर यादव नेतृत्व के मामले में कड़ी टक्कर दे रहे हैं। रविवार को शाहनवाज हुसैन ने खुद के रेस में होने के पूरे संकेत दिए। उन्होंने कहा, 'भला किसे नेता बनना अच्छा नहीं लगता है?'

पहली बार जब 2005 में जेडी(यू) और बीजेपी की पूर्ण बहुमत से साझा सरकार बनी तो सुशील मोदी उपमुख्यमंत्री बने। वह जून 2013 तक उपमुख्यमंत्री के पद पर बने रहे। सुशील मोदी जब तक सरकार का हिस्सा रहे नीतीश कुमार का विश्वासपात्र बने रहे। उन्होंने कभी भी तल्ख अंदाज में नीतीश के खिलाफ कुछ नहीं बोला। इसी हफ्ते विधान परिषद में सुशील कुमार मोदी ने कहा था कि वह नीतीश कुमार का दिल से सम्मान करते हैं। नीतीश के प्रति सुशील कुमार मोदी की यही निष्ठा जेडी(यू) और बीजेपी के अलायंस खत्म होने के बाद उन पर भारी पड़ सकती है।

बिहार में नीतीश और बीजेपी के बीच पर्याप्त कटुता आ गई है। इसी कटुता का नतीजा है कि नीतीश ने अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी लालू प्रसाद यादव से हाथ मिला लिया। अब बीजेपी बिहार में ऐसे शख्स को नेतृत्व सौंपना चाहेगी जो लालू के साथ-साथ नीतीश कुमार पर भी हमलावर रहे।

सुशील कुमार मोदी तब तक आडवाणी खेमे के नेता माने जाते रहे जब तक कि बीजेपी की कमान नरेंद्र मोदी के हाथ में नहीं आ गई। नरेंद्र मोदी के साथ सुशील कुमार मोदी की शिफ्टिंग स्वभाविक से ज्यादा अचानक हुई है। जाहिर है सुशील मोदी की गिनती नरेंद्र मोदी के वफादारों की पंक्ति में नहीं होती है। ऐसे में नीतीश से जुदा होने के बाद सुशील कुमार मोदी के नेतृत्व में क्या बीजेपी अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में जाएगी? इस सवाल का जवाब सुशील कुमार मोदी भी आसानी से नहीं दे पाएंगे। क्योंकि बिहार के बदले सियासी माहौल में वह अपनी स्थिति अच्छी तरह से जानते हैं।

फिलहाल बिहार विधानसभा में नंदकिशोर यादव को बीजेपी ने विपक्ष का नेता बनाया है। नंदकिशोर यादव बीजेपी में एकलौते यादव जाति के बड़े नेता हैं। उनकी छवि सुशील मोदी की तरह नीतीश के वफादर की नहीं है। यादवों का बिहार की राजनीति में अच्छा-खासा प्रभाव है। नीतीश सरकार में नंदकिशोर यादव को बढ़िया काम करने वाले मंत्री का खिताब भी मिल चुका है। ऐसे में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी नंदकिशोर यादव को आजमा सकती है। नंदकिशोर यादव बिहार बीजेपी को लीड करने के मामले में सुशील कुमार मोदी को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। दरअसल, नंदकिशोर यादव बिहार में उस जाति से ताल्लुक रखते हैं जो पिछड़ी जातियों में सबसे दबंग और सबसे ज्यादा मतदाता संख्या वाली है। बिहार में यादवों का 21 पर्सेंट वोट है।

बिहार की करवट लेती राजनीति में शाहनवाज हुसैन का भी महत्व अचानक बढ़ गया है। भले वह इस बार भागलपुर से लोकसभा चुनाव जीतने में चूक गए लेकिन पार्टी में उनकी अहमियत कम नहीं हुई है। वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके शाहनवाज बीजेपी के सबसे अहम मुस्लिम चेहरा हैं। नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यक वोट छिटकने के डर से ही नरेंद्र मोदी के कारण बीजेपी का साथ छोड़ने का फैसला लिया था। हालांकि यह फैसला उनके पक्ष में नहीं गया और अल्पसंख्यकों का ज्यादातर वोट लालू के साथ गए। ऐसे में बीजेपी बिहार विधानसभा चुनाव में शाहनवाज हुसैन पर भी दांव लगा सकती है। मोदी सरकार में शाहनवाज को मंत्री नहीं बनाने के फैसले को भी इससे जोड़कर देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि बीजेपी शाहनवाज को बिहार में नेतृत्व की जिम्मेदारी सौंपकर अपनी अल्पसंख्यक विरोध छवि झूठा साबित करने के लिए एक रणनीतिक फैसला ले सकती है।