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महिलाओं के लिए मिसाल, मिला प्रेमलता अग्रवाल को पद्मश्री

ठीक ही कहा गया है कि "खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा भी पुछे - ए बंदे तेरी राजा क्या है |"  अर्थात इरादे अगर बुलद हों तो कोई भी काम नहीं है मुश्किल | जिसे साबित कर दिखाया है सिलीगुड़ी की एक महिला ने | जिसने एवरेस्ट की चोटी पर अपना कदम रख कर पद्मश्री पुरस्कार पाने में सफलता हासिल कर ली |


जिसके पिता रामावतार अग्रवाल ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उनकी नौ संतानों में से कोई पद्मश्री प्राप्त करेगा. लेकिन उनकी दूसरी संतान प्रेमलता ने यह सपना पूरा कर दिया. वह भी शादी के बाद. यह अपने आप में एक मिसाल है. खासकर गृहणियों के लिए और आज के युवतियों के लिए भी. शादी के बाद भी सपने पूरे किये जा सकते है. ऐसा प्रेमलता ने सिद्ध कर दिया.
प्रेमलता के भाई किशन गर्ग ने बताया कि हमारे परिवार और महिला समाज के लिए गर्व की बात है. जबसे उन्हें पद्मश्री मिलने की खबर आयी है, बधाई देने वालों का तांता लगा है. रविवार को वह घर आ रही है. उसके स्वागत में हम खूब तैयारी कर रहे है. गौरतलब है कि प्रेमलता ने 48 वर्ष की उम्र में 20 मई ,2011 को एवरेस्ट की चोटी पर अपना कदम रखा था. लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में भी उनकी यह उपलब्धि दर्ज है. प्रेमलता के परिवारवालों का कहना है कि वह पढ.ने से अधिक खेलकूद में आगे थी. लेकिन उसे उचित माहौल नहीं मिला. उसने कभी अपनी इच्छा को जाहिर ही नहीं किया. सुखिया पोखरी स्कूल में वह एक अच्छी खिलाड.ी के रूप में जानी जाती थी. लेकिन हमारी ये बहन हमारा सिर पर्वत के समान ऊंचा करेगी, कभी नहीं सोचा था.