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किताबी कीड़ा बनने की जगह करें बौद्धिक क्षमता में विकास : सीबीएसई

पीएसए की प्रथम परीक्षा 14 फरवरी 2013 को
अब चला गया जमाना जब परीक्षा का मतलब होता था किताबों का रट्टा लगाना। अब किताबों के सिद्धांत के बदले जीवन के सिद्धान्त और मानसिक क्षमता के कसौटी पर आंकी जाएगी छात्र-छात्राओं की आई क्यू लेवल। सिर्फ किताबी कीड़ा बनने से काम नहीं चलेगा।
सीबीएसई ने नए सत्र से नवमी व ग्यारहवीं कक्षा के छात्र-छात्राओं के लिए
पीएसए (प्रोब्लम सॉल्विंग एसेसमेंट) में बैठना अनिवार्य कर दिया है। इस परीक्षा के लिए किसी प्रकार का निश्चित सिलेबस नहीं होगा। छात्रों के बौद्धिक क्षमता की जांच की जाएगी। जांच कुल 90 अंकों के होंगे। इस दौरान कुल 60 प्रश्न पूछे जाएंगे। छात्रों के लिए क्वानटेटिव रिजनिंग, क्वालिटेटिव रिजनिंग व भाषा संप्रेषण कला से जुड़े सवाल पूछे जाएंगे। क्वांटेटिव रिजनिंग के तहत ह्यूमेनिटिज, कला व समाजिक विज्ञान से प्रश्न पूछे जाएंगे। वहीं क्वालिटेटिव रिजनिंग के तहत गणित व विज्ञान, लैंग्वेज कनर्वशेशन के तहत व्याकरण व लिखित संप्रेषण करने को कहा जाएगा।
21वीं शताब्दी से कदमताल करने के लिए बच्चों के बीच सकारात्मक सोच, निर्णय क्षमता, विश्लेषणात्मक क्षमता व संप्रेषण में माहिर बनाने के लिए ऐसे प्रयोग किए जा रहे जिसे विषय ज्ञान से ज्यादा जीवन जीने की कला पर जोर दिया जा रहा है। पीएसए जांच परीक्षा के अंकों को दसवीं व बारहवीं बोर्ड में भी जोड़े जाएंगे। नवमीं कक्षा के छात्रों को यदि पीएसए में कम अंक आते हैं तो वे दसवीं कक्षा में पुन: जांच परीक्षा में शामिल होकर इसे सुधार सकते हैं। प्रथम पीएसए की परीक्षा 14 फरवरी 2013 को आयोजित की जाएगी। इस परीक्षा की तैयारी के लिए बोर्ड या विद्यालय के द्वारा अलग से किसी प्रकार की कक्षा का संचालन नहीं किया जाएगा। परीक्षा में शामिल छात्रों को बोर्ड के द्वारा प्रमाण पत्र दिया जाएगा।
परीक्षा में उन्हीं छात्रों को शामिल होने की अनुमति मिलेगी जिन्होंने पंजीयन प्रपत्र भर दिया है। परीक्षा के लिए प्रश्न पत्र व ओएमआर सीट बोर्ड के द्वारा ही भेजे जाएंगे। सीबीएसई के कॉर्डिनेटर चंद्रचूड़ झा ने कहा कि ऐसे प्रयोग से छात्रों के बौद्धिक क्षमता में विकास होगी व किताबों से इतर भी जानकारी मिलेगी। पीएसए की जांच परीक्षा में बैठने के बाद छात्रों को बैंकिंग, रेलवे आदि अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में काफी मदद मिलेगी। इसका वजह है कि पीएसए के सिलेबस प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाने वाले प्रश्नों से काफी मिलता-जुलता है।