
2014 के लोकसभा चुनावों से पहले लोकलुभावन रेल बजट पेश करने में मदद मिलेगी।
रेलमंत्री पवन कुमार बंसल ने पदभार ग्रहण करते वक्त ही स्पष्ट कर दिया था कि रेल किराये बढ़ाने की जरूरत है। बाद में हिमाचल और गुजरात चुनावों के मद्देनजर उन्होंने इस पर अगर-मगर शुरू कर दिया। अब जबकि दोनों विधानसभा चुनाव निपट चुके हैं, किराया वृद्धि पर फिर मंथन शुरू हो गया है। जहां तक बयानबाजी का सवाल है, इसकी कमान बंसल के बजाय उनके मातहत राज्यमंत्रियों ने संभाली है। रेल राज्यमंत्री अधीर रंजन चौधरी के अलावा कोटला जय सूर्य प्रकाश रेड्डी ने भी किराया बढ़ाने की जरूरत पर जोर देना शुरू कर दिया है। चौधरी के मुताबिक रेलवे की माली हालत खराब है। धन की कमी से सैकड़ों परियोजनाएं अधूरी पड़ी हैं। सुरक्षा व सुविधाओं के लिए लोग रेलवे की तरफ देख रहे हैं। ऐसे में किरायों में बढ़ोतरी की तत्काल आवश्यकता है। रेड्डी ने तो यह भी सुझा दिया है कि किरायों में 5-10 पैसे प्रति किलोमीटर की वृद्धि होनी ही चाहिए।
रेलवे यूनियनें भी काफी समय से किराया बढ़ोतरी की मांग कर रही हैं। आल इंडिया रेलवेमेन्स फेडरेशन के महासचिव शिवगोपाल मिश्रा ने प्रधानमंत्री को तभी खत लिख दिया था जब दिनेश त्रिवेदी रेल मंत्री थे। अब उन्होंने कहा है कि किराया बढ़ाने के लिए रेल बजट का इंतजार नहीं किया जाना चाहिए। रेलवे बोर्ड के अफसरों के मुताबिक किराया वृद्धि का एलान रेल बजट से पहले होने की संभावनाएं ज्यादा हैं। सरकार रेल बजट से पहले रेलवे टैरिफ अथॉरिटी (आरटीए) का गठन करना चाहती है, ताकि बजट में इसकी घोषणा की जा सके। एक बार आरटीए का गठन हो गया तो उसकी सिफारिश के बगैर बढ़ोतरी संभव नहीं होगी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अलावा वित्त मंत्रालय और योजना आयोग रेलवे की माली हालत को लेकर चिंतित हैं। नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) भी रेलवे की लंबित परियोजनाओं को लेकर चिंता जता चुका है। लंबे अरसे बाद रेल मंत्रालय कांग्रेसी मंत्रियों के हाथ आया है। ऐसे में नौ साल से लटकी किराया बढ़ोतरी को अमली जामा पहनाने में सरकार देर नहीं करना चाहती।