बिहार के विभिन्न राजकीय स्कूलों में कार्य कर रहे नियमित शिक्षक अब शिक्षा विभाग
के आरडीडीइ (क्षेत्रीय शिक्षा उपनिदेशक) एवं डीईओ (जिला शिक्षा अधिकारी)
जैसे आला प्रशासनिक पदों पर तैनात हो सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार अवर
शिक्षा सेवा संवर्ग के बिहार शिक्षा सेवा संवर्ग में मर्जर से संबंधित
शिक्षा विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव डा.एमएम झा के 2006 के फैसले पर मुहर
लगा दी है। अदालत ने इस मामले में
बिहार शिक्षा सेवा संघ की आपत्तियों को खारिज करते हुए राज्य सरकार के ढुलमुल रवैये पर कड़ी नाराजगी जताई है।
सुप्रीम कोर्ट ने मर्जर को सही ठहराते हुए कहा है कि यह सर्वोच्च न्यायालय के 1998 में दिए गए फैसले के अनुरूप है। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को कैडर मर्जर का निर्देश देते हुए कहा था कि वह खुद यह निर्णय ले कि किस संवर्ग का मर्जर होना है। ऐसे में इस कैडर मर्जर को अनुचित नहीं कहा जा सकता है, भले ही यह फैसला कुछ कर्मियों को प्रभावित करे। अदालत ने बिहार एजुकेशन सर्विस एसोसिएशन के इस दावे को भी खारिज कर दिया कि अवर शिक्षा सेवा के लोग सरकारी सेवा में नहीं हैं।
एसोसिएशन ने अपनी अपील में ही कहा है कि अवर शिक्षा सेवा संवर्ग के लोग बिहार सर्विस कोड के संलग्नक-16 में शामिल हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने साथ ही मर्जर को अनुचित बताने वाले पटना हाईकोर्ट के 31अक्टूबर, 2007 के फैसले को भी रद कर दिया है। यह भी कहा है कि राज्य सरकार ने इस मुद्दे पर कई बार अपना स्टैंड बदला है। सरकार के इस ढुलमुल रवैये का गलत प्रभाव शिक्षकों पर पड़ा है। मर्जर को अनुचित ठहराने वाले पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ बिहार राज्य सरकारी माध्यमिक शिक्षक संघ ने पहले उच्च न्यायालय में ही अपील की थी, जो 2010 में खारिज कर दी गई। सुप्रीम कोर्ट में 2010 में तब यह विशेष अनुमति याचिका(एसएलपी) दायर की थी। इस फैसले से वरिष्ठ शिक्षकों के आरडीडीइ एवं डीईओ जैसे प्रशासनिक पदाधिकारी बनने का रास्ता साफ हो गया है।
बिहार शिक्षा सेवा संघ की आपत्तियों को खारिज करते हुए राज्य सरकार के ढुलमुल रवैये पर कड़ी नाराजगी जताई है।
सुप्रीम कोर्ट ने मर्जर को सही ठहराते हुए कहा है कि यह सर्वोच्च न्यायालय के 1998 में दिए गए फैसले के अनुरूप है। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को कैडर मर्जर का निर्देश देते हुए कहा था कि वह खुद यह निर्णय ले कि किस संवर्ग का मर्जर होना है। ऐसे में इस कैडर मर्जर को अनुचित नहीं कहा जा सकता है, भले ही यह फैसला कुछ कर्मियों को प्रभावित करे। अदालत ने बिहार एजुकेशन सर्विस एसोसिएशन के इस दावे को भी खारिज कर दिया कि अवर शिक्षा सेवा के लोग सरकारी सेवा में नहीं हैं।
एसोसिएशन ने अपनी अपील में ही कहा है कि अवर शिक्षा सेवा संवर्ग के लोग बिहार सर्विस कोड के संलग्नक-16 में शामिल हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने साथ ही मर्जर को अनुचित बताने वाले पटना हाईकोर्ट के 31अक्टूबर, 2007 के फैसले को भी रद कर दिया है। यह भी कहा है कि राज्य सरकार ने इस मुद्दे पर कई बार अपना स्टैंड बदला है। सरकार के इस ढुलमुल रवैये का गलत प्रभाव शिक्षकों पर पड़ा है। मर्जर को अनुचित ठहराने वाले पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ बिहार राज्य सरकारी माध्यमिक शिक्षक संघ ने पहले उच्च न्यायालय में ही अपील की थी, जो 2010 में खारिज कर दी गई। सुप्रीम कोर्ट में 2010 में तब यह विशेष अनुमति याचिका(एसएलपी) दायर की थी। इस फैसले से वरिष्ठ शिक्षकों के आरडीडीइ एवं डीईओ जैसे प्रशासनिक पदाधिकारी बनने का रास्ता साफ हो गया है।