माता दुर्गा आज से नौ दिनों के लिए पृथ्वी पर आ रही हैं। वे 28 जून को वापस अपने लोक लौट जाएंगी। साल भर में ऐसा चार बार होता है जब माता दुर्गा पृथ्वी पर अपने भक्तों के बीच आती हैं। पृथ्वी को माता का मायका माना गया है। माता हर बार नौ दिनों के लिए मायके आती हैं, इसलिए माता के आगमन से जाने के दिन तक को नवरात्र के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों में चार नवरात्र की चर्चा की गयी है। शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र को प्रकट नवरात्र कहा गया है। जबकि आषाढ़ और माघ के नवरात्र को गुप्त नवरात्र के नाम से जाना जाता है। आज से शुरू हो रहा नवरात्र गुप्त नवरात्र है। इसे शक्ति की उपासना के लिए उत्तम माना गया है। इस दौरान तंत्र-मंत्र की साधना का फल जल्दी मिलता है। मनोकामना पूरी करने वाली दस महाविद्याएं इस नवरात्र में शुम्भ-निशुम्भ का वध करने वाली माता दुर्गा की महासरस्वती रूप की प्रधानता रहती है। शास्त्रों में महासरस्वती के साथ शाकंभरी देवी की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। श्रृंग ऋषि ने कहा है कि जिस प्रकार चैत्र नवरात्र में विष्णु पूजा की और शारदीय नवरात्र में शक्ति के नौ रूपों की पूजा की प्रधानता रहती है, गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की पूजा का महत्व होता है। इनकी उपासना से धन-धान्य एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। काली, तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला ये दस महाविद्याएं हैं। माता की पूजा करें, ग्रहों के शुभ फल पाए। जिनकी कुण्डली में कोई ग्रह कमज़ोर हैं या शत्रु भाव में बैठकर हानि पहुंचा रहे हैं। ऐसे लोगों को नवरात्र के इन दिनों में माता की उपासना करनी चाहिए। जिनका सूर्य अनुकूल नहीं है उन्हें शैल पुत्री की उपासना से लाभ मिलता है। कूष्मांडा की पूजा से चन्द्रमा शुभ फल देने लगता है। मंगल जिनका प्रतिकूल है उन्हें स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए। बुध को मजबूत बनाने के लिए कात्यायनी की साधना करें। महागौरी की पूजा से गुरू बलवान होकर शुभ फल देने लगता है। शुक्र को शुभ बनाने के लिए सिद्घिदात्री की पूजा करें। कालरात्रि की भक्ति से शनि का कुप्रभाव समाप्त हो जाता है। राहु अगर कष्ट दे रहा है तो ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा करें और केतु के दुष्प्रभाव को समाप्त करने के लिए चंद्रघंटा की पूजा करनी चाहिए।