राधा और कृष्ण ने समाज को प्रेम की परिभाषा दी है - स्वामी अगमानंद जी महाराज
राजेश कानोड़िया, भागलपुर। स्थानीय कृषि भवन, तिलकामांझी के आस्था प्रशाल में फक्कड़ बाबा के तत्वावधान में श्रीराधाष्टमी महोत्सव का आयोजन बुधवार को किया गया। यह महोत्सव श्री रामचंद्राचार्य परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। जहां विद्यावाचस्पति कुलगीतकार पंडित आमोद मिश्र ने स्वस्तिवाचन किया। मुरारी मिश्र ने राधा-कृष्ण के जीवन पर आधारित कविता पेश की। कार्यक्रम का संचालन डा. विजय कुमार मिश्र विरजू भाई ने किया।
मौके पर विषय प्रवेश कराते हुए स्वामी आगमानंद जी महाराज ने सभी को राधे-राधे कहकर आशीर्वाद दिया। साथ ही कहा कि समर्पण का प्रतीक है राधा-कृष्ण का प्रेम। द्वापर युग में इस पावन तिथि पर देवी राधा का जन्म हुआ था। देवी राधा का जन्म दिवस भाद्रमास की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को है। जबकि भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रमास की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि हुआ था। एक ही माह के अष्टमी तिथि को कृष्ण और राधा का अवतरण होना कई मायने में खास है। राधा और कृष्ण ने समाज को प्रेम की परिभाषा दी है।
इस अवसर पर प्रो. डा. मथुरानाथ दुबे, गीतकार राजकुमार, पंडित ज्योतिन्द्र प्रसाद चौधरी, डा. लक्ष्मीश्वर झा, वेदांति शंभू नाथ शास्त्री, स्वामी शिव प्रेमानंद भाईजी, स्वामी मानवानंद, कुंदन बाबा, मनोरंजन प्रसाद सिंह, पंडित प्रेम शंकर भारती, मृत्युंजय कुंवर, सुबोध दा, प्रभात कुमार सिंह आदि ने संबोधित किया। स्वामी आगमानंद जी महाराज ने कहा सनातन संस्कृति का आधार हमारा गौरवशाली अतीत है। इसलिए हमसबों का कर्तव्य है कि कम से कम महत्वपूर्ण तिथि को हमेशा याद करें और जयंती मनाएं। पुष्यतिथि पर भी उन्हें याद करें। ऋषि, मुनि, साहित्यकार, लेखक और कवि को भी याद करते रहें। भारतीय, हिंदुत्व आधारित सनातन व सत्य जीवन शैली को अपनाएं। उन्होंने सभी के कल्याणार्थ आशीर्वाद दिया।