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मधुबनी में मिड-डे मील से 15 बच्चे बीमार, ऑरगेनो-फॉसफेट ने ली छपरा में 22 जान

बिहार के छपरा जिले में जहरीले मिड डे मील मामले को अभी चौबिस घंटे भी नहीं हुए कि राज्य के मधुबनी जिले से भी
मिडे डे मील खाने से 15 बच्चों के बीमार होने की खबर आ रही है. बताया जा रहा है कि मधुबनी में स्कूल में विषाक्त खाना खाने से 10 बच्चे बेहोश हो गए हैं.
वहीं बिहार के ही सारन जिले में मिड डे मील खाने से 22 बच्चों की मौत हो गई है व 27 की हालत गंभीर बनी हुई है. सरकर ने माना है कि यह विषाक्तता का केस है. शुरूआती जांच में खाने में कीटनाशक ऑरगेनो-फॉसफेट पाया गया है.
फूड पॉयजनिंग नहीं बल्कि पॉइजनिंग
बिहार के शिक्षा मंत्री पीके साही ने कहा, यह फूड पॉयजनिंग नहीं बल्कि पॉइजनिंग (विषाक्तता) का केस है. अब यह जांच का विषय है कि जहर गलती से मिल गया या किसी बुरे इरादे से मिलाया गया. बच्चे खाना खाते ही बीमार हो गए.
मिड डे मील में था चावल, दाल और सोयाबीन का आटा. मील स्कूल की किचन में ही बना था. बच्चों के उल्टी करने के कारण कर्मचारियों ने भोजन परोसना बंद कर दिया. शुरूआती जांच में सामने आया है कि खाने में कीटनाशक के तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले ऑरगेनो-फॉसफेट मौजूद था. ऑरगेनो-फॉसफेट चावल व गेहूं की फसल पर कीटनाशक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.
बेहद खतरनाक है ऑरगेनो-फॉसफेट
ऑरगेनो-फॉसफेट कीटनाशक नर्वस सिस्टम, रेस्पीरेट्री ट्रेक्ट व कार्डियोवस्कुलर सिस्टम पर असर करता है. आमतौर पर इससे उबकाई आती है, लार बहती है, पेट में मरोड़, दस्त लगना, उल्टी,पसीना आना व बीपी बढ़ जाता है. असर ज्यादा हो तो इससे आंख पथरा जाती है, सांस लेने में परेशानी होती है, फेफड़ों में पानी भर जाता है, ऐंठन होती है,मरीज कोमा में चला जाता है,रक्त प्रवाह कम हो जाता है व ब्लड प्लास्मा में ग्लूकोस की मात्रा बढ़ जाती है. कुछ मामलों में तो लकवा तक मार सकता है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस घटना की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिए हैं. सीएमओ के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार सारन डिवीजनल कमिश्नर व डीआईजी के साथ फारेंसिक साइंस लेबोरेट्री टीम इस संयुक्त जांच में सहयोग करेगी.
मिड-डे मील से भड़का बिहार
बिहार के सारण जिले में मिड-डे मील से मरने वालों की संख्या 22 हो गयी है.इन मौतों के बाद से आम लोगों में गुस्सा उबल रहा है. इसी का नतीजा है कि नीतीश सरकार के विरोध में गुस्‍साए लोगों ने छपरा में कई जगहों पर तोड़फोड़ की है. सड़कों पर उतरे लोगों ने पुलिस वैन फूंक दी और थाने को आग के हवाले कर दिया है.धीरे-धीरे मामला तूल पकड़ता जा रहा है.
25 बच्चे अभी भी बीमार
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि इस मामले में अब तक कुल 22 छात्रों की जान जा चुकी है तथा स्कूल की महिला रसोइया के अलावा 25 बच्चे अभी भी बीमार हैं. बीमार बच्चों में 11 की गंभीर स्थिति को देखते हुए उन्हें पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) के आईसीयू वार्ड में रखा गया है.
छपरा में ही हुई 16 मौतें
शिक्षा विभाग के मुख्य सचिव अमरजीत सिन्हा ने बताया कि पहली से पांचवी कक्षा में पढ़ने वाले 10 साल तक की उम्र के 16 बच्चों की मौत छपरा में हुई और चार अन्य की कल देर रात पीएमसीएच लाए जाने के क्रम में रास्ते में ही मौत हो गई थी. वहीं एक अन्य छात्र की आज सुबह अस्पताल में मौत हो गई.
स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव व्यास जी और केंद्रीय मानव संसाधन विभाग के अतिरिक्त सचिव अमरजीत सिन्हा ने पीएमसीएच पहुंच कर डाक्टरों से बातचीत की और बच्चों के इलाज के बारे में जानकारी ली. इस दौरान उन्होंने कुछ बीमार बच्चों से भी बात कर उनका हालचाल पूछा.
बच्चों की मौत पर सियासत शुरू
बच्चों की मौत के बाद सियासत तेज हो गयी है. भाजपा, राजद और लोजपा की ओर से छपरा बंद कराया गया है जबकि भाकपा माले ने राज्य में प्रतिवाद दिवस का ऐलान किया है. मिड डे मील से इतनी बड़ी तादाद में बच्चों की मौत की यह पहली घटना है. बीजेपी नेता गिरिराज सिंह ने मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार से तत्‍काल इस्‍तीफा देने की मांग की है. आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने दोषियों के खिलाफ तत्‍काल कार्रवाई की मांग की है.
राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के संसदीय क्षेत्र छपरा में हुई स्कूली बच्चों की मौत पर राजनीति तेज हो गयी. लालू प्रसाद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि सरकार की विफलता की पोल हर दिन खुल रही है. अब यह बात समझ में नहीं आ रही है कि नीतीश सरकार सत्ता में बनी क्यों है. हर ओर अराजकता मची हुई है. सरकार को इन बातों से कोई मतलब नहीं रह गया है.
केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय गंभीर
केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने मामले को बेहद गंभीरता से लेते हुए एक वरिष्ठ अधिकारी को छपरा रवाना कर दिया है. देश में मिड-डे मील कार्यक्रम पर निगरानी रख रहे मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव अमरजीत सिंह मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लेंगे. केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री पल्‍लम राजू ने कहा कि शुरुआती तौर पर यह दूषित खाने की वजह से मौत का मामला लगता है लेकिन असली वजह जानने के लिए फॉरेंसिक रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है.
1995 में लागू हुई थी योजना
उल्लेखनीय है कि मध्यान्ह भोजन (मिड डे मील) योजना भारत सरकार तथा राज्य सरकार द्वारा संचालित की जाती है, जो कि 15 अगस्त 1995 को लागू की गई थी, जिसमे  कक्षा 1 से 5 तक के सरकारी, परिषदीय, राज्य सरकार द्वारा सहायता प्राप्त प्राथमिक विद्यालयों में पढने वाले सभी विद्यार्थियों को, जिनकी उपस्थिति 80 प्रतिशत है, उन्हे हर महीने 3 किलो गेहूं या चावल दिए जाने का प्रावधान था. लेकिन इस योजना के अंतर्गत पढ़ने वाले बच्चो को दिए जाने वाले खाद्यान्न का पूरा फायदा उन्हे न पहुंचाकर, उनके परिवार के बीच बंट जाता था, जिससे उन्हे जरूरी पोषक तत्व कम मात्रा में मिलते थे.
2004 से मिल रहा है पका-पकाया भोजन
28 नवम्बर 2001 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश मे दिनांक 1 सितम्बर 2004 से पका पकाया भोजन प्राथमिक विद्यालयों में उपलब्ध कराये जाने की योजना आरम्भ कर दी गई. योजना की सफलता को देखते हुए अक्तूबर 2007 से इसे शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े ब्लॉकों में स्थित उच्च प्राथमिक विद्यालयों तथा अप्रैल 2008 से शेष ब्लॉकों एवं नगर क्षेत्र में स्थित उच्च प्राथमिक विद्यालयों तक विस्तारित कर दिया गया.
12 लाख स्कूलों में चल रही है योजना
इस योजना पर साल 2008 से लेकर 2012 तक क्रमश: 5835.44, 6539.52. 6937.79, 9128.44, 9901.92 करोड़ एवं जुलाई 2012 तक 4343.14 करोड़ रुपये खर्च किया जा जुका है. वर्तमान मे इस योजना द्वारा लगभग 12 लाख विद्यालयों के 11 करोड़ विद्यार्थियों को लाभान्वित किया जा रहा है.
विद्यालयों में छात्र संख्या बढ़ाना था उद्देश्य
पौष्टिक भोजन उपलब्ध करा कर बच्चों में शिक्षा ग्रहण करने की क्षमता को विकसित करने, विद्यालयों में छात्र संख्या बढ़ाने, प्राथमिक कक्षाओं में विद्यालय में छात्रों के रुकने की मानसिकता विकसित करने, बच्चों में भाई-चारे की भावना विकसित करने तथा उन्हें एक साथ बिठा कर भोजन कराना, ताकि उनमे अच्छी समझ पैदा हो और विभिन्न जातियों एवं धर्मों के बीच के अंतर को दूर करें, इसके लिए मध्यान्ह भोजन प्राधिकरण का गठन अक्टूबर 2006 मे किया गया.
निर्धारित है मेन्यू
इस योजना के अन्तर्गत विद्यालयों में मध्यावकाश में बच्चो को स्वादिष्ट भोजन दिये जाने का प्रावधान है. प्रत्येक छात्र को सप्ताह में 4 दिन चावल का बना भोजन तथा 2 दिन गेहूं से बना भोजन दिए जाने की व्यवस्था है. इस योजना मे भारत सरकार द्वारा प्राथमिक स्तर पर 100 ग्राम प्रति छात्र प्रति दिन एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर 150 ग्राम प्रति छात्र प्रति दिन की दर से भोजन (गेहू/चावल) उपलब्ध कराया जाता है.
पौष्टिकता का रखा जाता है ध्यान
प्राथमिक विद्यालयों में उपलब्ध कराये जा रहे भोजन में कम से कम 450 कैलोरी ऊर्जा व 12 ग्राम प्रोटीन एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कम से कम 700 कैलोरी ऊर्जा व 20 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध होना चाहिए. भोजन पकाने का काम ग्राम पंचायतों व वार्ड सभासदों की देख रेख में किया जा रहा है.
एफसीआई देता है नि:शुल्क खाद्यान्न
भोजन बनाने के लिए आवश्यक खाद्यान्न (गेहूं एवं चावल) फूड कॉरपोरशन ऑफ इंडिया से निःशुल्क प्रदान किया जाता है. ये सारी सामग्री ग्राम प्रधान को उपलब्ध करायी जाती है, जो अपनी देखरेख में विद्यालय परिसर में बने किचन शेड में भोजन तैयार कराते है.
तय हैं सबकी ज़िम्मेदारियां
भोजन बनाने के लिए लगने वाली अन्य आवश्यक सामग्री की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी भी ग्राम प्रधान की ही है. इसलिए उसे उसकी लागत ग्राम प्रधान व प्रधानाध्यापक के ज्वाइंट खाते मे उपलब्ध करायी जाती है. नगर क्षेत्रों में अधिकतर स्थानों पर भोजन बनाने का कार्य स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा किया जा रहा है.
विद्यालयों में पके-पकाए भोजन की व्यवस्था की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए नगर क्षेत्र पर वार्ड समिति एवं ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम पंचायत समिति का गठन किया गया है. मंडल स्तर पर मंडलीय सहायक निदेशक (बेसिक शिक्षा) को दायित्व सौंपा गया है.
जनपद स्तर पर जिलाधिकारी को नोडल अधिकारी का दायित्व सौंपा गया है. विकास खंड स्तर पर उपजिलाधिकारी की अध्यक्षता में टास्क फोर्स गठित की गई है, जिसमे सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी उप विद्यालय निरीक्षक को सदस्य सचिव के रूप में नियुक्त किया गया है.