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नेपाली ने आज के ही दिन आखिरी सांस ली थी भागलपुर में

पारसकुंज, भागलपुर (9263075306, 9122273692, 9572963930) | 
‘‘जब से होश संभाला है, आजाद हवा में घूम रहा
अपनी धुन है अपना आलम, अपनी मस्ती में झूम रहा।
पहचान यही जग में मेरी, बिन मांगे मैं खाता-पीता
मैं नित्य न पढ.ता रामायण, नहीं साथ में रहती है गीता
पर इतना भी मैं बुरा नहीं, जो पीकर कहूं नहीं पीता।’’
बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि हिंदी की महान विभूति, राष्ट्रीय कवि
तथा गीतों के राजकुमार गोपाल सिंह नेपाली ने खुद की फिल्म कंपनी हिमालय फिल्म्स एवं नेपाली पिक्चर्स के नाम से स्थापित की थी. इसके बैनर तले अपने ही निर्देशन में तीन फिल्मों का निर्माण भी किया. पहला ‘नजराना’ 1949 में, दूसरा देवानंद-सुरैया अभिनीत ‘सनसनी’ 1950-51 में और तीसरा मोतीलाल-श्यामा अभिनीत ‘खुशबू’ 1954-55 में.
अपनी मन हरने वाली शैली के महान कवि और हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ गीतकार गोपाल सिंह नेपाली का जन्म 11 अगस्त, 1911 को पश्‍चिमी चंपारण (बिहार) के बेतिया में हुआ था. उनका मूल नाम गोपाल बहादुर सिंह है।
आप 1927 ई से बराबर लिखते रहे. हिन्दी के युग प्रवर्तक कवियों में प्रसाद-पंत-निराला, मैथिली, नवीन और स्नेही के बाद की पीढ.ी में यह अग्रणी रहे. हरी घास, पीपल, सरिता आदि सैकड.ों कविताएं आपने बचपन में ही लिखी थी. एक कवि के रूप में इनकी ख्याति 1932 ई में ‘काशी प्रचारिणी सभा’ के द्विवेदी अभिनंदन-उत्सव में अनुपम काव्य-पाठ से हुई. जिसमें इनकी कविता और पाठ शैली को सर्वश्रेष्ठ ठहराया गया. 1943-44 ई के करीब प्रथम बार लखनऊ रेडियो पर काव्य प्रसारण कर, एक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में आमंत्रित हो बंबई जा पहुंचे. वहां फिल्मिस्तान के मालिक सेठ तुलाराम जालान ने इनको अपने यहां पांच सौ रुपये मासिक वेतन पर दो वर्षों के लिए अनुबंधित कर लिया. तब सपरिवार वहीं के मलाड में एक छोटा सा घर किराये पर ले लिया और फिल्मों के लिए गीत लिखने लगे. फिल्मिस्तान की मजदूर फिल्म जो 1944 ई में बनी थी, नेपाली के जीवन की पहली और कई मायने में ऐतिहासिक फिल्म साबित हुई. इस फिल्म में नेपाली जी के लिखे गीत इतने लोकप्रिय हुए कि उनको बंगाल फिल्म र्जनलिस्ट ऐसोसिएशन कलकत्ता ने सन् 1945 में सर्वश्रेष्ठ गीतकार का अवार्ड दिया था.सन 1944 से लेकर करीब 60-62 तक नेपाली जी ने भारतीय सिनेमा को पैंतालिस-पचास फिल्मों के माध्यम से करीब चार सौ बढ़िया से बढ़िया लोकप्रिय गीत एवं भजन दिये.
फिल्म गजरे, सफर, नाग पंचमी, लीला, बेगम, नरसी भगत, शिव भक्त, तुलसी दास, शिकारी, जय भवानी, नाग चंपा, सल्तनत, गौरी पूजा आदि इसके मिसाल हैं.
17 अप्रैल, 1963 को दिन के करीब 11 बजे बिहार के ही भागलपुर रेलवे जंक्शन के प्लेटफार्म संख्या-दो पर संदेहास्पद स्थिति में नेपाली जी ने अपने प्राणों की आहूति दे दी. आज 17 अप्रैल है. हिन्दी की उस महान विभूति, राष्ट्रीय कवि स्व गोपाल सिंह नेपाली की 50वीं पुण्यतिथि आज हम उनको, उन्हीं की पंक्तियों के साथ नमन करते हैं-
‘पन्द्रह अगस्त के दिन थी जिसकी नींव पड.ी
उस प्रजातंत्र की रखवारी में कलम खड.ी
ना मानो तो विश्‍वास बदलने वाले हैं
हम तो कवि हैं, इतिहास बदलने वाले हैं.’