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कैलाशपति मिश्र को श्रद्धांजलि देने पटना जाएंगे नरेंद्र मोदी

कभी बिहार की राजनीति में बीजेपी के भीष्मपितामह कहे जाने वाले कैलाशपति मिश्र का आज दोपहर एक बजे पटना में निधन हो गया. 89 साल के कैलाशपति मिश्र गुजरात के राज्यपाल रह चुके थे। गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को बिहार की राजधानी पटना आ रहे हैं, जहां वो बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैलाशपति मिश्र को श्रद्धांजलि देंगे.
बिहार बीजेपी के सबसे बड़े नेता रहे कैलाशपति मिश्र को श्रद्धांजलि देने नरेंद्र मोदी रविवार को दोपहर 3:30 बजे पटना पहुंचने वाले हैं.अहमदाबाद से नरेंद्र मोदी करीब 12:30 बजे पटना के लिए उड़ान भरेंगे. कमोबेश यही वक्त होगा जब गांधी मैदान में नीतीश कुमार अधिकार रैली को संबोधित कर रहे होंगे.
मोदी के इस अचानक बने बिहार दौरे को लेकर जेडीयू के नेता कुछ ज्यादा कह नहीं पा रहे हैं. हालांकि मोदी के बिहार जाने की खबर आने से पहले ही नीतीश कुमार सब काम छोड़कर कैलाशपति मिश्र के घर गए और उनको श्रद्धांजलि दी.
बिहार बीजेपी की राजनीति में कैलाशपति मिश्र को भीष्म पितामह कहा जाता था. 89 साल के मिश्र लंबे समय से बीमार चल रहे थे. पटना में अपने घर में आज उन्होंने अंतिम सांस ली.
मिश्र आजीवन अविवाहित रहे. उनके पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, मिश्र काफी दिनों से बीमार थे. उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. उनके पार्थिव शरीर को पहले विधानमंडल परिसर और फिर पार्टी कार्यालय ले जाया जाएगा. इसके बाद उनकी अंतिम यात्रा प्रारंभ होगी.
बीजेपी नेता संजय मयूख के मुताबिक, मिश्र के अंतिम संस्कार में वरिष्ठ बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली सहित कई नेताओं के पटना पहुंचने की संभावना है. मिश्र के निधन के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी उनके पटना स्थित आवास पर पहुंचे और दिवंगत नेता को श्रद्धांजलि दी. बिहार के मुख्यमंत्री ने मिश्र के निधन पर गहरी संवेदना प्रकट करते हुए कहा, 'मिश्रजी के चले जाने से राजनीति में एक युग का अंत हो गया है.'
कौन थे कैलाशपति मिश्र?
बिहार के छोटे से शहर बक्सर के पास दुधारचक गांव में 1923 में जन्मे मिश्र ने बिहार और झारखंड में भाजपा की न केवल नींव डाली, बल्कि उस पर ऐसा महल खड़ा कर दिया जिसे गिराना किसी भी राजनीतिक दल के लिए आसान नहीं माना जाता है. छोटी उम्र से ही उनमें देश के लिए कुछ करने का जज्बा था. यही वजह है कि वह 1942 के आंदोलन में कूद पड़े और 10वीं कक्षा के छात्र रहते उन्हें जेल यात्रा तक करनी पड़ी. 1945 में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ गए. इसी दौरान उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लिया, जिसे अंत तक निभाया.
निर्धन पंडित हजारी मिश्र के घर में जन्मे मिश्र ने 1959 में पहली बार सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया और जनसंघ के प्रदेश संगठन मंत्री का पदभार संभाला. 1977 में विक्रम विधानसभा से विधायक चुने गए और तत्कालीन बिहार सरकार में वह वित्त मंत्री बने.
इसके बाद उन्होंने न केवल राज्य, बल्कि देश की राजनीति में भी हाथ आजमाने लगे. साल 1980 में बीजेपी के गठन के बाद बिहार इकाई के प्रथम अध्यक्ष बनाए गए और 1984 में मिश्र राज्यसभा के सदस्य बने.
मिश्र इसके बाद राष्ट्रीय राजनीति में भागीदारी करने लगे. 1995 से लेकर 2003 तक वह बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे. इसके अलावा उन्होंने पार्टी के कई अन्य महत्वपूर्ण पदों का दायित्व भी बखूबी निभाया.
सात मई 2003 से लेकर सात जुलाई 2004 तक वह गुजरात के राज्यपाल रहे और इसी दौरान चार महीने तक उन्हें राजस्थान के राज्यपाल का दायित्व सौंपा गया था.
बीजेपी में मिश्र के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने उनके निधन पर कहा, 'बीजेपी अभिभावकविहीन हो गई. एक युग का अंत हो गया. उनके विषय में कुछ भी कहना पर्याप्त नहीं है. उनका निधन मेरी व्यक्तिगत क्षति है.'नीतीश कुमार ने मिश्र को एक कुशल राजनीतिज्ञ और प्रसिद्ध समाजसेवी बताते हुए उनकी आत्मा की शांति तथा उनके परिजनों, अनुयायियों और प्रशंसकों को दुख की घड़ी में धैर्य धारण करने की शक्ति प्रदान करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की.
राज्य के सभी राजनीतिक दलों के कई नेता मिश्र के आवास पर पहुंचकर उनके शोक संतप्त परिवार को ढांढस बंधा रहे हैं.