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केजरीवाल ने सरकार बनाने का दावा पेश किया, उप राज्‍यपाल ने राष्ट्रपति को भेजा प्रस्‍ताव


एक पखवाड़े से चला आ रहा गतिरोध समाप्त करते हुए आम आदमी पार्टी (आप) ने सोमवार को राष्ट्रीय राजधानी में कांग्रेस के बाहरी समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश किया। पार्टी को चार दिसंबर को हुए विधानसभा चुनाव में 28 सीटों के रूप में भारी सफलता मिली थी, जबकि कांग्रेस को मात्र 8 सीटों से संतोष करना पड़ा। 
आप की राजनीतिक मामलों की समिति की सोमवार सुबह एक बैठक हुई, जिसमें जनमतसंग्रह के नतीजों को देखते हुए सरकार बनाने की दिशा में आगे बढ़ने का फैसला किया गया। पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल उप राज्यपाल नजीब जंग से मिले और उन्हें सरकार बनाने का दावा करने संबंधी पत्र सौंपा। 
चुनाव में पार्टी का चेहरा रहे 45 वर्षीय केजरीवाल नये मुख्यमंत्री होंगे, जो रामलीला मैदान में सार्वजनिक तौर पर शपथ लेंगे। यह वही रामलीला मैदान है जो जनलोकपाल विधेयक के लिए हजारे के भ्रष्टाचार निरोधक आंदोलन का साक्षी रहा है। केजरीवाल ने कहा कि वह विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश करेंगे और देखते हैं कि क्या होता है। यह दिल्ली की पहली अल्पमत सरकार होगी। जंग ने उनसे मुलाकात करने आए केजरीवाल को बताया कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की मंजूरी मिलने के बाद शपथ ग्रहण समारोह के दिन और समय के संबंध में फैसला किया जाएगा। उपराज्यपाल ने केजरीवाल को बताया कि वह सरकार बनाने संबंधी प्रस्ताव राष्ट्रपति के फैसले के लिए उन्हें भेजेंगे। 
गाजियाबाद जिले के कौशांबी में आप की विधायी मामलों की समिति की दो घंटे चली बैठक के बाद केजरीवाल ने बातया कि पार्टी ने सरकार बनाने संबंधी पत्र उपराज्यपाल को सौंपने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि हमें 14 दिसंबर को उपराज्यपाल ने सरकार बनाने के संबंध में विचार विमर्श के लिए बुलाया था। हमने इस संबंध में निर्णय लेने के लिए समय मांगा था क्योंकि हमारी पार्टी आम आदमी की पार्टी है और हमें उनकी राय लेनी थी। यहां कौशांगी में आप के कार्यालय में संवाददाताओं से बातचीत में केजरीवाल ने कहा कि हमें वेबसाइट, फोन, एसएमएस और जनसभाओं से जनता की राय मिली और उनके से ज्यादातर लोग आप के सरकार बनाने के हक में हैं। अब हम उपराज्यपाल को यह पत्र देने जा रहे हैं कि आप सरकार बनाने के लिए तैयार है। उन्होंने बताया कि पार्टी ने पूरी दिल्ली में 280 जनसभाएं कीं, जिनमें से 257 में पार्टी द्वारा सरकार बनाने का समर्थन किया गया। शेष में भाग लेने वाले लोगों का कहना था कि पार्टी को सत्ता नहीं संभालनी चाहिए। 
दिल्ली में सरकार के गठन को लेकर पिछले दो सप्ताह से गतिरोध है। आठ दिसंबर को दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों का ऐलान किया गया था। आप के पास 28 सीटें हैं और कांग्रेस अपनी 8 सीटों के साथ उसे समर्थन देने को तैयार है। भाजपा 31 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है। नौकरशाह से राजनीति में आए केजरीवाल ने पिछले एक सप्ताह में बहुत सी जनसभाओं के हिस्सा लिया ताकि सरकार गठन के बारे में लोगों के विचार जान सकें। पहली बार चुनाव मैदान में उतरने के बाद राजधानी के सारे चुनावी समीकरण पलट देने वाली पार्टी पर सरकार बनाने को लेकर खासा दबाव था क्योंकि भाजपा सरकार बनाने से इंकार कर चुकी थी और कांग्रेस ने सरकार बनाने के लिए आप को बिना शर्त समर्थन देने संबंधी पत्र उप राज्यपाल को सौंप दिया था। इससे पूर्व कांग्रेस और भाजपा दोनो ने सरकार बनाने से इंकार करने पर आप की निंदा करते हुए कहा था कि वह जिम्मेदारियों से भाग रही है क्योंकि पार्टी को यह मालूम है कि वह बिजली शुल्क में 50 प्रतिशत कटौती और नगर के हर परिवार को हर दिन 700 लीटर मुफ्त पानी देने जैसे चुनावी वायदे कभी पूरे नहीं कर पाएगी। 
चुनाव के नतीजे आने के बाद आप ने सरकार बनाने के लिए किसी पार्टी का समर्थन लेने से इंकार करते हुए कहा था कि वह रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाएगी। इस बात पर जोर देते हुए मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर कोई दुविधा नहीं है, पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया ने कहा कि इस शीर्ष पद के लिए केजरीवाल पार्टी की पसंद हैं। उन्होंने कहा कि इस बात को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं कि मुख्यमंत्री कौन होगा। आप ने पहले ही कहा था कि पार्टी अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर चुनाव लड़ेगी। हमारे चुनाव घोषणापत्र में भी यही कहा गया। चुनाव के नतीजे आने के बाद उन्हें विधायक दल का नेता चुना गया इसलिए अरविंद केजरीवाल ही मुख्यमंत्री होंगे। 
इस मामले पर जनसभाएं आयोजित किए जाने की बात पर केजरीवाल ने कहा कि अन्य दलों की तरह आप महत्वपूर्ण मामलों पर जनता की भागीदारी चाहती है और वास्तविक लोकतंत्र लाना चाहती है। चुनाव में तूफानी प्रदर्शन करने वाली आम आदमी पार्टी का गठन 26 नवंबर 2012 को किया गया था। केजरीवाल और हजारे के बीच इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन का राजनीतिकरण करने को लेकर उपजे मतभेद के बाद आम आदमी पार्टी अस्तित्व में आई। हजारे का कहना था कि आंदोलन गैर राजनीतिक बना रहना चाहिए, जबकि केजरीवाल का ख्याल था कि आंदोलन को राजनीति का रूप दिया जाना चाहिए ताकि उसकी प्रत्यक्ष राजनीतिक भागीदारी हो सके। अपने गठन के बाद आप ने कई आंदोलन चलाए। इनमें महंगाई से लेकर बिजली और पानी की आसमान छूती कीमतों के खिलाफ आंदोलन शामिल है। इसके अलावा पार्टी ने यौन अपराधों के शिकार बनने वालों के लिए न्याय की मांग की और कड़े बलात्कार विरोधी कानून की हिमायत की। 
अन्‍ना हजारे और केजरीवाल ने 19 सितंबर 2012 को इस बात का ऐलान कर दिया कि राजनीति में भूमिका को लेकर उनमें उपजे मतभेद समाप्त नहीं हो सकते। केजरीवाल के पास भ्रष्टाचार निरोधक आंदोलन में शामिल कुछ मजबूत लोगों जैसे प्रशांत भूषण और शांति भूषण का समर्थन था, लेकिन किरन बेदी और संतोष हेगड़े जैसे लोग उनके खिलाफ थे। दो अक्‍टूबर को महात्मा गांधी के जन्मदिन पर केजरीवाल ने ऐलान किया कि वह एक राजनीतिक पार्टी का गठन करने जा रहे हैं, 26 नवंबर को औपचारिक तौर पर पार्टी का गठन कर दिया गया। 1948 में इसी दिन भारत के संविधान को मंजूरी दी गई थी। पार्टी का नाम आम आदमी पार्टी रखा गया क्योंकि केजरीवाल हमेशा से ही खुद को आम आदमियों का प्रतिनिधि बताते रहे थे। 24 नवंबर 2012 को पार्टी संविधान को मंजूरी दी गई। पार्टी ने दावा किया कि आम आदमी की आवाज तब तक कोई नहीं सुनता और उसकी तरफ कोई नहीं देखता जब तक कि राजनेताओं को उनकी जरूरत नहीं होती। वह सरकार की जवाबदेही के अंदाज को बदलना चाहते हैं और स्वराज के गांधी सिद्धांत के हिमायती हैं। केजरीवाल ने कहा कि आप विचारधाराओं पर चलने से इंकार करती है और वह व्यवस्था को बदलने के लिए राजनीति में आए हैं। उन्होंने कहा कि हम आम आदमी हैं। अगर हमें वाम में समाधान मिलेगा तो हम उसे वहां से लेकर खुश होंगे, अगर हमें दक्षिण से समाधान मिलेगा तो हम उसे वहां से लेकर खुश हैं। पार्टी ने दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों के लिए अलग अलग घोषणापत्र तैयार किया था। उम्मीदवारों का चयन करते समय उनकी आपराधिक पृष्ठभूमि की जांच की गई और पार्टी ने ईमानदार उम्मीदवार चुनने का दावा किया। आप के केन्द्रीय घोषणापत्र में सत्ता में आने के 15 दिन के भीतर जन लोकपाल विधेयक को लागू करने का वादा किया गया था।