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मोबाइल से बात करना होगा महंगा

देश में जीएसएम आधारित मोबाइल सेवा देने वाली कंपनियों मसलन एयरटेल, वोडाफोन की आखिरी उम्मीद भी खत्म हो गई। इनके कड़े विरोध के बावजूद केंद्र सरकार ने मौजूदा मोबाइल ऑपरेटरों से उनके स्पेक्ट्रम के बदले एकमुश्त शुल्क लेने के प्रस्ताव पर अंतिम मुहर लगा दी। इससे सरकारी खजाने में भले ही 31 हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि चली जाए, लेकिन देश में मोबाइल फोन सेवा के महंगा होने के रास्ता भी साफ हो गया है।

कैबिनेट ने गुरुवार को आगामी नीलामी में 4.4 मेगाह‌र्ट्ज से ज्यादा स्पेक्ट्रम रखने वाली कंपनियों से भी अतिरिक्त शुल्क लेने का फैसला किया है। इस शुल्क को भी स्पेक्ट्रम नीलामी से प्राप्त राशि के आधार पर तय किया जाएगा। साथ ही सीडीएमए मोबाइल सेवा के लिए स्पेक्ट्रम की नीलामी प्रक्रिया को रोक दिया गया है। इस प्रक्रिया में हिस्सा लेने में सिर्फ दो कंपनियों ने रुचि दिखाई थी। बाद में इन दोनों ने भी नाम वापस ले लिया था।
कैबिनेट के फैसले के बारे में जानकारी देते हुए वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने बताया कि 6.2 मेगाह‌र्ट्ज से ज्यादा स्पेक्ट्रम रखने वाली हर मौजूदा जीएसएम कंपनी को एकमुश्त फीस पिछली तारीख से देनी होगी। इन कंपनियों के लिए फीस की गणना जुलाई, 2008 से की जाएगी। 12 नवंबर को 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी प्रक्रिया से स्पेक्ट्रम की जो कीमत तय की जाएगी, उसके आधार पर ही जीएसएम कंपनियों को एकमुश्त शुल्क देना होगा। जो कंपनी एकमुश्त फीस नहीं देना चाहती है वह 4.4 मेगाह‌र्ट्ज से अतिरिक्त स्पेक्ट्रम सरकार को लौटा सकती है। कैबिनेट से पहले अधिकारप्राप्त मंत्रियों का समूह यानी ईजीओएम भी इस फैसले पर सहमत था।
वैसे दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने यह भरोसा दिया है कि ताजा फैसले का कॉल दरों पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि कंपनियों पर बोझ तो पड़ेगा, लेकिन उन्हें लाभ भी ज्यादा होने जा रहा है। इसके उलट जीएसएम सेवा देने वाली कंपनियां लगातार कह रही हैं कि अगर एकमुश्त फीस लगाई गई तो उन्हें कॉल दरों में 35 पैसे से 70 पैसे प्रति मिनट तक की वृद्धि करनी पड़ सकती है। सिब्बल के मुताबिक, सीडीएमए के लिए उनका मंत्रालय फिर से नया कैबिनेट नोट तैयार करेगा। अभी तो कंपनियों की तरफ से रुचि नहीं दिखाने की वजह से इसकी नीलामी रोक दी गई है। नए प्रस्ताव में सीडीएमए स्पेक्ट्रम की कीमत तय करने का भी कोई नया फार्मूला निकाला जाएगा।
कैबिनेट ने गुरुवार को दूरसंचार कंपनियों के बीच विलय व अधिग्रहण की नई कीमत तय करने के फार्मूले को भी मंजूरी दे दी। एक कंपनी किसी दूसरी कंपनी को अधिग्रहीत करती है तो वह उसके स्पेक्ट्रम की कीमत सरकार को अदा करेगी। यह कीमत आगामी नीलामी के आधार पर तय की जाएगी। सरकार ने वर्ष 2008 के घटनाक्रम से सबक सीखते हुए यह फैसला किया है। उस वक्त कई कंपनियों ने सरकार से 1,658 करोड़ रुपये में स्पेक्ट्रम खरीदकर अपनी हिस्सेदारी इससे कई गुना ज्यादा कीमत पर दूसरी कंपनियों को बेची थी।
इस फैसले के बावजूद 40 हजार करोड़ रुपये का राजस्व स्पेक्ट्रम नीलामी से हासिल करने का लक्ष्य हासिल होता नहीं दिख रहा। कुछ राजस्व एकमुश्त फीस से वसूल किया जा सकता है, लेकिन कंपनियों को यह शुल्क दस वर्षो में देने का विकल्प भी दिया जा रहा है।